||छोटा सा गाँव मेरा||
*मेरे लिये सारा संसार था।।*
*एक ज्ञानो नाई, एक रफीक काजी,
*एक निराना लुहार था.*
*छोटे छोटे घर थे पर ,*
*हर आदमी बङा दिलदार था.*
*कहीं भी रोटी खा लेते थे,*
*हर घर मे हमारा हुक्मरात था.*
*बड़ी, पापड़ की सब्जी मजे से खाते थे,* *जिसके आगे शाही पनीर बेकार था.*
*ना कोई मैगी ना पिज़्ज़ा...*
*झटपट पापड़, भुजिया, आचार, या फिर दलिया तैयार था.*
*नीम की निम्बोली और बेरिया सदाबहार था.*
*रसोई के परात या घड़े को बजा लेते,*
*दोस्तों पूरा संगीतकार था.*
*कपड़े धोने की साबुन लगा नहा लेते,* *स्विमिंग पूल सब बेकार था.*
*और फिर घुता या कबड्डी खेल लेते,*
*हमें कहाँ क्रिकेट का खुमार था.*
*दादा दादी से कहानी सुन लेते,*
*कहाँ यूट्यूब और अखबार था.*
*भाई-भाई को देख के खुश था,*
*सभी लोगों मे बहुत प्यार था.*
*छोटा सा गाँव मेरा पूरा संसार था.*
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गोविन्द पूनियां(देशी छोरा) कृत
Written by:- GOVIND POONIA
Somani,churu,Rajasthan