जाग रे अब जूना जोगी...
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जाग रे अब जूना जोगी,
भोगी मतना भव बंधन !
सुमरण किजै शक्ति शंभु,
सुख पूरसी सबरै सदन ।।
सब जाण कर अनजाण क्यूं है,
यूं मैं तुम सूं पूछता ।
कर गौर अब गिरजा सुतन,
क्यूं सांच सूं मुख मोड़ता ।।
उठ कलम धारण करत कर में,
भारत री लिख वेदना ।
सच नै है साबित करणू सच में,
लख्खन रेख ना भेदना ।

लिख राम रा सब काम रूठा,
कुड़ कपट्ट ना कहजै।
अब आखजै अमृत वचन,
ज्यूं शारदे सास्वत सजे ।।
अब धर्म धीरज धारण कर,
सब काम कर कल्याण का ।
मन मोह त्यागत छळ छंदन,
कथ किरत किनियांण का ।।
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रिछपाल सिंह बारहठ रजवाड़ी
(चारणवासी- चूरू)
गोविन्द पूनिया देशी छोरा
(सोमासी -चूरू)
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जाग रे अब जूना जोगी,
भोगी मतना भव बंधन !
सुमरण किजै शक्ति शंभु,
सुख पूरसी सबरै सदन ।।
सब जाण कर अनजाण क्यूं है,
यूं मैं तुम सूं पूछता ।
कर गौर अब गिरजा सुतन,
क्यूं सांच सूं मुख मोड़ता ।।
उठ कलम धारण करत कर में,
भारत री लिख वेदना ।
सच नै है साबित करणू सच में,
लख्खन रेख ना भेदना ।

लिख राम रा सब काम रूठा,
कुड़ कपट्ट ना कहजै।
अब आखजै अमृत वचन,
ज्यूं शारदे सास्वत सजे ।।
अब धर्म धीरज धारण कर,
सब काम कर कल्याण का ।
मन मोह त्यागत छळ छंदन,
कथ किरत किनियांण का ।।
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रिछपाल सिंह बारहठ रजवाड़ी
(चारणवासी- चूरू)
गोविन्द पूनिया देशी छोरा
(सोमासी -चूरू)
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